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2025.06.09 परमधर्मपीठ की जुबली के दौरान वाटिकन के प्रतिनिधियों से मुलाकात करते संत पापा लियो 14वें 2025.06.09 परमधर्मपीठ की जुबली के दौरान वाटिकन के प्रतिनिधियों से मुलाकात करते संत पापा लियो 14वें  (@Vatican Media)

सुसमाचार की कूटनीति के माध्यम से शांति का बीज बोना

परमधर्मपीठ की जयंती और पोप लियो 14वें के साथ मुलाकात से पहले एक साक्षात्कार में, राज्य सचिव कार्डिनल पिएत्रो परोलिन ने प्रेरितिक राजदूतों को सेतु के रूप में वर्णित किया, जो पोप को स्थानीय कलीसियाओं से, कलीसिया को राष्ट्रों से तथा विश्व के घावों को सुसमाचार की आशा से जोड़ता है।

वाटिकन न्यूज

वाटिकन सिटी, मंगलवार, 10 जून 2025 (रेई) : कार्डिनल पिएत्रो पारोलिन ने वाटिकन मीडिया के साथ एक साक्षात्कार में कहा, "परमधर्मपीठ के प्रतिनिधि सुसमाचार की कूटनीति के वाहक हैं," और यह उसका कर्तव्य है कि वे "मध्यस्थता और संवाद के लिए खुद को प्रतिबद्ध करें" और शांति का बीजारोपण करें।

वाटिकन राज्य सचिव सोमवार 9 जून को परमधर्मपीठ की जयंती के अवसर पर और मंगलवार, 10 जून को परमधर्मपीठ के प्रतिनिधियों के साथ पोप लियो 14वें की मुलाकात की पूर्व संध्या पर बोल रहे थे।

प्रश्न : महामहिम, परमधर्मपीठ की जयंती कलीसियाई जगत के साथ जुड़ने के तरीके पर मुलाकात और चिंतन का अवसर प्रदान करती है। परमधर्मपीठ के राजनयिक दल, विशेष रूप से प्रेरितिक राजदूत के लिए यह आयोजन क्या महत्व रखता है?

परमधर्मपीठ की जयंती एकता का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करती है, यहाँ तक कि परमधर्मपीठ के प्रतिनिधियों के लिए भी। उनमें से प्रत्येक जन एक स्थान पर स्थायी रूप से बसने की संभावना के बिना एक तरह की निरंतर "तीर्थयात्रा" करता है। यह एक चलता-फिरता जीवन है - हाँ - लेकिन एकाकी में नहीं। जयंती एक ऐसे परिवार की छवि को ध्यान में लाती है, जो दुनियाभर में फैला है, फिर भी एकजुट है, पोप के करीब होने के लिए रोम में इकट्ठा होता है।

यह मिलन कलीसिया के स्थानीय और सार्वभौमिक आयामों के बीच के संबंध को स्पष्ट करता है। परमधर्मपीठीय प्रतिनिधि सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण रूप से ख्रीस्त के पुरोहित और उन समुदायों के बीच एक सेतु है, जहाँ उसे भेजा जाता है। साथ ही, वह स्थानीय कलीसियाओं और परमधर्मपीठ के बीच संबंध बनाए रखता है। राज्य सचिवालय इस एकता को बनाए रखने में एक समन्वयकारी भूमिका निभाता है, वह रोम और दुनिया भर में परमधर्मपीठ के प्रतिनिधियों के मिशन का समर्थन करता है।

प्रश्न : जैसा कि आपने उल्लेख किया है, प्रेरितिक राजदूत स्थानीय कलीसियाओं और नागरिक अधिकारियों के लिए संत पिता का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनकी भूमिका के बारे में क्या अनोखा है, और वे अपनी प्रेरितिक और कूटनीतिक जिम्मेदारियों को कैसे संतुलित करते हैं?

प्रेरितिक राजदूत वास्तव में देश की सरकारों और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के लिए पोप के प्रतिनिधि हैं। इस अर्थ में, उनकी भूमिका स्पष्ट रूप से कूटनीतिक है: नागरिक अधिकारियों के साथ जुड़ना, विभाजन को ठीक करने के लिए काम करना और शांति, न्याय और धार्मिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देना। वे इस काम को राष्ट्रीय हितों की खोज में नहीं करते, बल्कि दुनिया और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के एक सुसमाचार-केंद्रित दृष्टिकोण द्वारा निर्देशित होते हैं।

हालाँकि, उनकी भूमिका को पूरी तरह से संस्थागत कार्य तक सीमित नहीं किया जा सकता। यह एक सच्ची प्रेरितिक उपस्थिति पर आधारित होनी चाहिए। एक प्रेरितिक राजदूत, सबसे बढ़कर, कलीसिया का एक व्यक्ति है – एक चरवाहा, जिसे भले चरवाहे ख्रीस्त के उदाहरण का पालन करने के लिए बुलाया जाता है। चरवाहा होने का मतलब है धर्माध्यक्षों, पुरोहितों, धर्मसंघी और उन समुदायों के करीब आना जिनकी सेवा करने के लिए उन्हें भेजा जाता है। इसके लिए एक कलीसियाई दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है - दूसरों के लिए जिम्मेदारी के बारे में एक पुरोहितीय जागरूकता।

इस तरह, प्रेरितिक राजदूत संत पेत्रुस के उत्तराधिकारी और स्थानीय कलीसियाओं के बीच, कलीसिया एवं राष्ट्रों के बीच, तथा विश्व के घावों और सुसमाचार द्वारा प्रदत्त आशा के बीच एक सेतु बन जाता है।

प्रश्न : आप एक परमधर्मपीठीय प्रतिनिधि के लिए किन गुणों को आवश्यक मानते हैं, खास तौर पर आज के जटिल ऐतिहासिक संदर्भ में?

मैं तीन गुणों पर प्रकाश डालूँगा। पहला, हृदय की प्रवृत्ति के रूप में विनम्रता। यह व्यक्ति को “छोटा” होने और यह भरोसा करने की अनुमति देता है कि प्रभु हमारे माध्यम से महान कार्य कर सकते हैं। घृणा और हिंसा से त्रस्त दुनिया में, निराशावाद में पड़ने का खतरा है। फिर भी, जब कठिन या अप्रत्याशित जिम्मेदारियों का सामना करना पड़ता है, तो हम उस अनुग्रह पर अपना भरोसा रखते हैं जो मिशन को साथ देता और मजबूती प्रदान करता है।

विनम्रता के साथ-साथ, मैं सुसमाचार प्रचार के उत्साह पर भी जोर देना चाहूँगा। परमधर्मपीठीय प्रतिनिधि सुसमाचार की कूटनीति के वाहक हैं, जिसे पृथ्वी के सबसे सुदूर कोनों तक भी मसीह के प्रकाश को पहुँचाने का काम सौंपा गया है।

अंत में, प्रतिनिधि को मेल-मिलाप का व्यक्ति होना चाहिए। परमधर्मपीठीय कूटनीति का मिशन सत्य, न्याय और शांति पर आधारित विश्व के निर्माण के लिए संत पिता के प्रयासों का समर्थन करना है। आज के संदर्भ में, परमधर्मपीठीय प्रतिनिधि को मध्यस्थ बनने और संवाद हेतु समर्पित होने के लिए कहा जाता है। अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के ताने-बाने को बुनने और विभाजित दलों के बीच शांति की सबसे कम इच्छा को भी समझने का यही एकमात्र तरीका है।

हमें शांति के बीज बोने के संत पिता के आह्वान का जवाब देना चाहिए, यह पहचानते हुए कि कूटनीति में, दूसरा एक विरोधी नहीं, बल्कि एक साथी इंसान है जिसके साथ हमें जुड़ने के लिए बुलाया गया है।

एक ऐसी दुनिया में जो लगातार विकसित हो रही है, युवा पुरोहितों का कूटनीतिक गठन समकालीन चुनौतियों के साथ कैसे तालमेल बिठाता है?

300 वर्षों से, परमधर्मपीठीय कलीसियाई अकादमी उन युवा पुरोहितों को तैयार कर रही है जो परमधर्मपीठ की राजनयिक सेवा में प्रवेश करने की तैयारी कर रहे हैं। इसका हालिया सुधार उस गठन को अद्यतन और मजबूत करने का प्रयास करता है ताकि यह आधुनिक दुनिया की जटिलताओं का बेहतर ढंग से जवाब दे सके।

वाटिकन कूटनीति में इस नए चरण का उद्देश्य ऐसे प्रतिनिधियों को भेजना है जो पेशेवर रूप से सक्षम हों और सुसमाचार प्रचार की भावना से गहराई से प्रेरित हों। इन राजनयिकों को संत पेत्रुस के उतराधिकारी की धर्मशिक्षा को सहभागिता के साधन, शांति के बीज बोनेवाले और लोगों के बीच एकजुटता और सद्भाव से चिह्नित संबंधों के निर्माता के रूप में आगे बढ़ाने के लिए बुलाया जाता है।

 

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10 जून 2025, 16:11